Skill-Based Education vs Traditional Education: कौन सा बेहतर है?

दोस्तों आज की इस बदलती हुई दुनिया में शिक्षा का तरीका पूरी तरह से बदल रहा है। अगर आप अपनी पढ़ाई पूरी कर लिए होंगे या उच्च स्तर की पढ़ाई कर रहे होंगे तो आप देखेंगे कि जब आप पढ़ाई करते थे और अभी के से में जो बच्चे पढ़ाई करते उनमें काफी अंतर होगा ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया के बदलने के साथ साथ शिक्षा का तरीका भी बदल रहा है पहले जहां शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबें पढ़ना, रटना और एग्जाम पास करना रहता था वहीं अब किताबें रटकर एग्जाम पास कर देने से काम नहीं बनेगा हमे नए नए स्किल्स भी सीखने होंगे। 

दोस्तों आज के इस बदली हुई दुनिया में डिग्री हासिल कर लेने से नौकरियां नहीं मिलेगी आपके पास डिग्री के साथ साथ स्किल्स भी होने चाहिए। क्योंकि अभी के समय में किसी भी संस्था आपको नौकरी देने के लिए आपका ज्ञान तो देखती है लेकिन ये भी देखती है कि आपके अंदर स्किल्स है कि नहीं । 

इसलिए दोस्तों आज हम ट्रेडिशनल एजुकेशन और स्किल बेस्ड एजुकेशन को जानने का प्रयास करेंगे - 

  1. Traditional Education क्या है?

ट्रेडिशनल एजुकेशन यानी पारंपरिक शिक्षा वो है जिसमें छात्र किताबों से पढ़ाई करते हैं, लेक्चर सुनते हैं, और परीक्षा देकर अंक प्राप्त करते हैं। इसमें ज्यादातर ध्यान थ्योरी और रटने पर दिया जाता है इसमें टीचर का रोल ज्यादा होता है और स्टूडेंट्स सिर्फ सुनने और लिखने पर फोकस करते हैं। इस शिक्षा में स्टूडेंट रिजल्ट को ही सफलता का पैमाना मानते हैं। यह शिक्षा प्रणाली सदियों से चली आ रही है । 
मुख्य विशेषताएं -
  • थ्योरी पर जोर - इसमें किताबों और सिद्धांतों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है ।
  • जानकारी को रटना - छात्रों को जानकारी याद करने और परीक्षा में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • डिग्री केंद्रित - इसका मुख्य उद्देश्य एक डिग्री प्राप्त करना होता है ।
  • शिक्षक केंद्रित - शिक्षक जानकारी का मुख्य स्रोत होता है और छात्र निष्क्रिय रूप से सुनते है ।
  • ज्ञान का माप - परीक्षा के अंकों और ग्रेड से ज्ञान को मापा जाता है।
2. कौशल-आधारित शिक्षा ( Skill-Based Education) 
स्किल बेस्ड एजुकेशन का मतलब है ऐसी शिक्षा जो छात्रों को प्रैक्टिकल ज्ञान और वास्तविक जीवन में काम आने वाले कौशल सिखाए। यह शिक्षा प्रणाली आधुनिक समय की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
मुख्य विशेषताएं -
  • व्यावहारिक ज्ञान पर जोर - इसमें करके सीखने पर ध्यान दिया जाता है। 
  • समस्या समाधान - छात्रों को वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार किया जाता है। 
  • प्रोजेक्ट और वर्कशॉप- सीखने के लिए प्रोजेक्ट, इंटर्नशिप और वर्कशॉप का उपयोग किया जाता है। 
  • बाजार की मांग के अनुसार - पाठ्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि छात्रों को उन कौशलों में प्रशिक्षित किया जा सके जिनकी बाजार में माग है (जैसे, कोडिंग, डिजिटल मार्केटिंग, डेटा एनालिटिक्स, कम्युनिकेशन) 
पारंपरिक और कौशल आधारित शिक्षा के बीच मुख्य अंतर - 
पारंपरिक शिक्षा -
  • उद्देश्य - ज्ञान प्राप्त करना और डिग्री लेना।
  • सीखने का तरीका - थ्योरेटिकल 
  • रिजल्ट - इसमें छात्र मार्क्स और ग्रेड पर निर्भर होते हैं। 
  • उपयोगिता - यह शिक्षा सिर्फ एग्जाम तक ही सीमित है।
  • सीखने की शैली - रटना और लिखना।
कौशल-आधारित शिक्षा -
  • उद्देश्य - नए-नए स्किल्स सीखना।
  • सीखने का तरीका - व्याहारिक ज्ञान और प्रैक्टिकल।
  • रिजल्ट - इसमें छात्र सीखने पर ध्यान देते हैं उन्हें रिजल्ट से कोई मतलब नहीं होता है। 
  • उपयोगिता - करियर के लिए उपयोगी है।
  • सीखने की शैली - अभ्यास करना।
क्यों आज कौशल आधारित शिक्षा जरूरी है ( why is Skill-Based Education important today) 
  • बढ़ता बेरोजगारी - अभी के समय में कई डिग्रीधारियों को भी नौकरी नहीं मिल पाती क्योंकि उनके पास आवश्यक कौशल नहीं होते।
  • उद्योग की बदलती मांग - उद्योग तेजी से बदल रहे हैं अब कंपनियां उन लोगों को हायर करना चाहती है जो पहले दिन से ही काम शुरू कर सके । 
  • आत्मनिर्भरता और उद्यमिता - कौशल सीखने से व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सकता है और अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकता है ।
  • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 : भारत की नई शिक्षा नीति में भी कौशल विकास पर विशेष जोर दिया गया है। यह इस बात का सबूत है कि सरकार भी इसका महत्व समझती है। 
क्या ट्रेडिशनल एजुकेशन बेकार है 
बिलकुल भी नहीं। ट्रेडिशनल एजुकेशन भी जरूरी है क्योंकि यह बेसिक knowledge देता है और अनुशासन सिखाता है। लेकिन अगर इनमें स्किल्स नहीं जोड़ी गई तो यह अधूरा रह जाता है।

दोस्तों शिक्षा का असली मकसद सिर्फ डिग्री लेना नहीं बल्कि जीवन के लिए तैयार होना है। ट्रेडिशनल एजुकेशन हमे बुनियादी ज्ञान देती है जबकि स्किल बेस्ड एजुकेशन हमें उस ज्ञान का इस्तेमाल करना सिखाती है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि दोनों का संतुलन बनाया जाए। यानी बच्चों को थ्योरी भी पढ़ाया जाय और साथ ही स्किल्स भी सिखाया जाए ताकि वे भविष्य में आत्मनिर्भर और सफल बन सकें। तो दोस्तों के आज के लिए इतना ही मिलते हैं अगले ब्लॉग में तबतक के लिए जय हिन्द जय भारत। 

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